मनरेगा: योजना एक लाभ अनेक

 

श्रीमति अर्चना सेठी

सहा. प्रा., अर्थशास्त्र अध्ययन शाला, पं.रविशंकर शुक्ल वि.वि. रायपुर

 

सारांश- 

इस अध्ययन का मूल उददेष्य योजना से मिलने वाले लाभ का अध्ययन करना है तथा आवष्यक सुझाव देना है । अधिनियम का मूल उदेष्य ग्रामीण इलाकों के ऐसे प्रत्येक परिवार को एक वित्त वर्ष के दौरान कम से कम 100 दिन का गांरटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना है जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने को तैयार हैं ताकि ग्रामीण भारत में रोजगार सुरक्षा की स्थिमित को और बेहतर बनाया जा सके। रोजगार गारंटी से उत्पादक संपदाओं का निर्माण करने पर्यावरण की रक्षा करने, ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण, ग्राम से शहरों की ओर होने वाले पलायन पर अंकुश लगने और सामाजिक समानता सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी। आवश्यकता इस बात की है कि भ्रष्टाचार को रोका जाय योजना में पारदशर््िाता हो तथा जनता  भी जागरुक हो तभी योजना का लाभ निचले स्तर के लोगों को मिल सकता है।

 

शब्द कुंजीः मनरेगा ग्रामीण विकास पर्यावरण संतुलन।

 

 प्रस्तावना

2 फरवरी, 2006 को आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले से शुरू की गई मनरेगा के प्राथमिक चरण में 200 पिछडे़ जिले रखे गए थे। इससे पूर्व सन् 2005 में ’’राष्ट्रीय काम के बदले अनाज कार्यक्रम ’’ के द्वारा मनरेगा का पायलट परीक्षण सफलतापूर्वक हो चुका था। प्रथम वर्ष में मनरेगा में कुल 8832.35 करोड़ रूपये व्यय हुए जबकि प्रावधान 6000 करोड़ रूपये का था तथा 2.1 करोड़ परिवारों को रोजगार दिया जा सका। यद्यपि मनरेगा कानून 2005 में यह प्रावधान था कि इसे पांच वर्ष की अवधि में चरणबध्द रूप से सभी ग्रामीण जिलों तक विस्तारित किया जाएगा किन्तु योजना की सफलता एवं उपयोगिता को देखते हुए इसे 01 अप्रैल 2008 से देश के सभी 614 ग्रामीण जिलांे तक विस्तारित कर दिया गया तथा इस वर्ष में लगभीग 25,000 करोड़ रूपये मनरेगा पर व्यय हुए। वर्तमान वित्तीय वर्ष हेतु मनरेगा में 30,000 करोड़ रूपये का वित्तीय प्रावधान रखा गया है। मनरेगा के अन्तर्गत वर्तमान में 10 करोड़ व्यक्ति जाॅब कार्डधारक हैं तथा पौने चार वर्षो में अभी तक कुल 70,000 करोड़ रूपये व्यय हो चुके हैं।

 

मनरेगा के अंतर्गत स्वीकार्य परियोजनाएंः-

मनरेगा का उदेश्य ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत रोजगार गारंटी सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम में इस उदेश्य की पूर्ति हेतु आवश्यक परियोजनाएं चलाई गई हैं। ये परियोजनाएं ग्रामीण विकास रोजगार सृजन के साथ-साथ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। अधिनियम की अनुसूची के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत किए जाने वाले कार्य निम्न हैं-

ऽ        जल संरक्षण तथा जल संचय।

ऽ        सूखे से बचाव के लिए वृक्षारोपण और वन संरक्षण।

ऽ        सिंचाई के लिए सूक्ष्म एवं लघु परियोजनाओं सहित नहरों का निर्माण।

ऽ        अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवारों या भूमि सुधारों के लाभान्वितों या इंदिरा आवास योजना के लाभान्वितों को जमीन तक सिंचाई की सुविधा पहुंचाना।

ऽ        परंपरागत जलस्रोतों के नवीकरण हेतु जलाश्यों से गाद की निकासी।

ऽ        भूमि विकास।

ऽ        बाढ़ नियंत्रण एवं सुरक्षा परियोजनाएं जिनमें जलभराव से ग्रस्त इलाकों से जल की निकासी।

ऽ        सहज आवागमन हेतु गांवों में सड़को का व्यापक जाल बिछाना, सड़क निर्माण परियोजनाओं में आवश्यकतानुसार पुलिया का निर्माण कराना एवं गांवो के भीतर सड़को के साथ-साथ नालियां भी बनवाना।

ऽ        राज्य सरकार के साथ परामर्श पर केंन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई भी अन्य कार्य।

 

मनरेगा के उदेश्य

1                  मनरेगा का मूल उदेश्य ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे परिवारों को एक वित्तीय वर्ष के दौरान कम से कम 100 दिन का गांरटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना है, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने को तैयार है।

2                  उत्पादक परिसम्पदाओं का निर्माण भू-जल संवर्द्धन एवं सरंक्षण, महिला सशक्तिकरण ,पलायन पर अंकुश लगाना तथा सामाजिक समानता सुनिश्चत करना।

3                  पारदर्शिता ,जवाबदेही व निर्णयों में विकेन्द्रीकरण के द्वारा ग्रामीण एवं पंचायती राज संस्थाओं का सशक्तिकरण करना।

 

शोध प्रविधि - मनरेगा निष्पादन सूचक ;डछत्म्ळ। च्मतवितउंदबम प्दकपबंजवत.डच्प्द्ध

योजना के प्रारंभ से लेकर विगत 5 वर्षो में मनरेगा निष्पादन का सम्रग मूल्यांकन इसके 5 प्रमुख अवयवों ;बवउचवदमदजेद्ध पंजीकृत परिवारों में रोजगार की माॅग सृजन प्रतिशत ;च्1द्ध ए महिलाओं को उपलब्ध कराया गया रोजगार प्रतिशत ;च्2द्ध एकुल लिए गए कार्यो मे से पूर्ण कार्यो का प्रतिशत ;3द्ध ए100 दिवस के प्रावधान की तुलना में प्रति परिवार औसत रोजगार सृजन प्रतिशत ;च्4द्ध एवं उपलब्ध राशि के विरूद्ध व्यय प्रतिशत ;5द्ध के आधार पर किया गया है। इन पाॅचों अवयवों के प्रतिशत मूल्य निकाले गए तथा इन प्रतिशत मूल्यों का समान्तर माध्य निकाल कर मनरेगा निष्पादन सूचक ;डच्प्द्ध की रचना की गई हैं। सूत्र रूप में -

;डच्प्त्र  ;च्1़च्2़च्3़च्4़च5द्धध्5

 

इस सूचक का अधिकतम मान 100 हो सकता है जो मनरेगा निष्पादन की आदर्श स्थिति को दर्शाता है। गणना हेतु मनरेगा की विभागीय बेवसाइट में उपलब्ध द्वितीयक आंकडो का प्रयोग किया गया है।

 

मनरेगा निष्पादन सूचक का निर्वचन

एमपीआई का मान 50 से कम है तो निम्न निष्पादन स्तर , 50 से 75 तक मध्यम स्तर और 75 से अधिक सूचक का मान 2006-07 से 2010-11 तक पांच वर्ष की अवधि में 51.58 से 54.91 के बीच अर्थात् निम्न मध्यम कोटि का रहा। केवल वर्ष 2009-10 में निष्पादन में मामूली सुधार हुआ।

 

इसी अवधि में छत्तीसगढ़ का मनरेगा निष्पादन सूचक 49.19 से 60.90 के बीच रहा है। 5 वर्ष के औसत निष्पादन को देखे तो भारत के 53.01 की तुलना में छत्तीसगढ में 54.24 प्रतिशत रहा है जो राष्ट्रीय औसत से थोडा अधिक है। भारत में निष्पादन लगभग स्थिर है जबकि छत्तीसगढ़ में निष्पादन में सतत गिरावट हो रही है। निरपेक्ष रूप में देखे तो निष्पादन स्तर काफी कम है।

 

 

एमपीआई के विश्लेषण से महत्वपूर्ण परिणाम

1.                 महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने मे अच्छी सफलता मिली है जिससे महिला सशक्तिकरण हुआ।

2.                 जाॅबकार्ड धारी परिवारों मे रोजगार की माॅग सृजन उत्पादक परिसंपति सृजन हेतु लिए गये कार्यो को पूर्ण करने का प्रतिशत एवं प्रति परिवार 100 दिवस औसत रोजगार सृजन में वांछित सफलता नही मिल पाई है जो चिन्ता का विषय है।

3.                 आर्थिक रूप में पिछडे एवं आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद छत्तीसगढ राज्य का मनरेगा निष्पादन बेहतर रहा है।

4.                 मनरेगा माॅग आधारित योजना होने के कारण इसकी सफलता रोजगार माॅग सृजन पर निर्भर करती है और इसी कारण यह सूचक सबसे महत्वपूर्ण है। यहां रोजगार की माॅग केवल आधे जाॅबकार्डधारी परिवारों द्वारा ही की जा रही है इसके दो प्रमुख कारण है पहला लोगों को 100 दिन के काम के कानूनी हक के प्रति जागरूकता की कमी तथा दूसरा क्रियान्वयन निकाय - ग्राम पंचायते एवं अन्य एजेन्सिया मजदूरांे की जागरूकता व समझ मे कमी का लाभ उठाकर काम के आवेदन को आसानी से स्वीकार नही कर रहे है अथवा तिथि में काम उपलब्ध न करा पाने के कारण राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता के भुगतान करने से बचने के लिए उनके नियंत्रण आधीन क्रियान्वयन निकायों को ऐसा करने हेतु प्रेरित करती है।

 

मनरेगा से लाभ

(1) रोजगार के अवसरः

आजादी के बाद से ग्रामीण बेरोजगारी भारत की एक प्रमुख समस्या रही है पिछले लगभग 6 दशकों में गांवों में रोजगार के नए अवसर जुटाकर गरीबी दूर करने के इरादे से केन्द्र तथा राज्य सरकारों की ओर से मसय-सयम पर अनेक योजनाएं और कार्यक्रम चलाए गए जिसके अच्छे परिणाम भी मिले। ंिकतु जनसंख्या वृध्दि के कारण बेरोजगारी की समस्या की विकरालता कम नहीं हुई। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव गांवों से शहरों की ओर पलायन के रूप में सामने आया। इस तथ्य से भी इंकार नहीं  किया जा सकता कि गांवों को खुशहाल बनाए बिना भारत की समृध्दि का सपना अधूरा रहेगा। इसी पृश्ठभूमि में पिछली यूपीए सरकार ने गांवों मे रोजगार की गारंटी देने का अनूठा कानून बनाया जिसने ग्रामीण भारत में एक तरह से क्रांति का संचार कर दिया। इस वर्श मई में हुए आम चुनावों झलक दिखाई दी।

 

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून नरेगा की सफलता से उन्साहित होकर मौजूइदा केन्द्र सरकार ने इसे और अधिक मुस्तैदी से लागू करने का संकल्प लिया है। इसी संकल्प के अनुरूप 2009-10 के केन्द्रीय बजट में इस कार्यक्रम के लिए 39,100 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 144 प्रतिशत अधिक है। पिछले वित्त वर्ष में 4.47 करोड़ से अधिक परिवारों को रोजगार मिला जबकि 2007-08 में इन परिवारों की संख्या 3,39 करोड़ थी। यही नहीं इस कानून के अन्तर्गत हाथ में लिए जाने वाले कामों में कृषि, वानिकी , जल संसाधन , भू संसाधन और ग्रामीण सड़कों से जुडे़ कार्य भी शामिल किए गए है। लेकिन ये गतिविधियां अभी चुने हुए 115 जिलों में ही प्रायोगिक आधार पर शामिल की जाएंगी। देश में सूखा पड़ने से सूखा राहत कार्यो को भी इसमें जोड़ने का प्रस्ताव हैं।

 

जिनके वयस्क सदस्य बेरोजगार हैं ओर मेहनत-मजदूरी करने को तैयार हैं। इस कानून का मुख्य उदेश्य गांवों में गरीबी दूर करके लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाना और उनका जीवन-स्तर बेहतरन बनाना है। यह कार्यक्रम समाज कल्याण और आम आदमी के उत्थान के उदेश्य से चलाई गई उन प्रमुख योजनाओं का हिस्सा है जिन्हें लागू करने का वादा यू.पी.ए सरकार ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत किया था। सरकार इससे पूर्व भी रोजगार सृजित करने की विविध योजनाएं चलाती रही है लेकिन पहले कभी भी रोजगार की कानूनी गारंटी नहीं दी गई थी। इस कार्यक्रम में वर्ष में कम से कम 100 दिनों का रोजगार मिल जाने से ग्रामीण परिवारों में आत्मविश्वास का स्तर ऊंचा उठ गया है। इससे ग्रामीण समुदाय में आर्थिक व सामाजिक विषमता कम करने में भी मदद मिल रही हैं।

 

रोजगार देने की प्रक्रिया में सरलता और पारदर्शिता के प्रावधानों के बावजूद इसके क्रियान्वयन में कई तरह की कमियों और खामियों की शिकायतें मिलती रहती हैं। इस क्रांतिकारी कार्यक्रम के सुचारू क्रियान्वयन में सबसे बड़ी बाधा है-भ्रष्टाचार। हालांकि श्रमिकों के चयन और धन के भुगतान की प्रक्रिया को पारदर्शी रखने के उपाय किए गए हैं किंतु नौकरशाहों और कुछ स्थानों पर पंचायतों के कर्मचारियों की भ्रष्ट गतिविधियों के समाचार मिलते रहते हैं। कई बार बेनामी श्रमिकों के मास्टर रोल बनाकर उनके नाम से वेतन का भुगतान कराके ये अधिकरी राशि हड़प कर लेते हैं। ऐसा भी देखने में आया है कि श्रमिकों से हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान कोरे कागज पर ले लिए जाते हैं और श्रमिक के काम पर न आने की स्थिति में भी उसके नाम पर भुगतान ले लिया जाता है। इसके अलावा मास्टर रोल में शामिल श्रमिकों के काम के दिन बेईमानी से बढ़ा दिए जाते हैं जिससे उन्हें वास्तविक श्रम से अधिक का भुगतान करके उसका कुछ हिस्सा उनसे नकद वसूल कर लिया जाता है। वैसे तो कहा जा सकता है कि इस तरह का भ्रष्टाचार अन्य सरकारी योजनाओं में भी चल रहा है लेकिन इस पर रोक लगाए बिना यह कार्यक्रम अपने उदेश्य से भटक जाएगा और देश के गांवों से गरीबी मिटाने का यह सुनहरा प्रयास विफल हो जाएगा।

 

रोजगार गारंटी कार्यक्रम की इस बात के लिए भी आलोचना की जाती है कि इससेक ग्रामीण लोग निठल्ले बन रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि साल में 100 दिन के काम की तो गारंटी है ही, इसलिए वे सोचने लगते हैं कि ज्यादा मेहनत करके कमाई करने की जरूरत नहीं है। एक और चिंताजनक तथ्य यह सामने आ रहा है कि मनरेगा का क्रियान्वयन सभी राज्यों में समान गति और लगन के साथ लागू नहीं किया जा रहा है। राजनीतिक,प्रशासनिक और सामाजिक कारणों से कुछ राज्य इसके प्रति अपेक्षित उत्साह नहीं दिखा रहें हैं। आन्ध्र प्रदेश जैसे राज्य में इसने ग्रामीण समाज में क्रांति ला दी है तो कुछ राज्यों में इसका कार्यान्वयन बहुत ढीला है।

 

क्रार्यक्रम को ज्यादा व्यापक तथा प्रभावी बनाने की दृष्टि से यह सुझाव आया है कि रोजगार की गारंटी 100 दिन तक सीमित न रखकर इसे बढ़ाने की छूट मिलनी चाहिए। एक सुझाव यह भी आया है कि दिहाड़ी की दर भी बढ़ाई जानी चाहिए। ये सुझाव देखने में उपयोगी लगते हैं किंतु इन्हें लागू करने का समय शायद अभी नही आया है। अभी तो 100 दिन तक के न्यूनतम रोजगार का लक्ष्य प्राप्त करने में भी कई वर्ष लगेंगे। फिलहाल कार्यक्रम को पूरे देश में लागू करने तथा इसमें जवाबदेही व पारदर्शिता लाने पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।

 

(2)गरीबों की सुरक्षाः

अब जबकि आर्थिक मंदी हमारे ऊपर मंडराने लगी है और जो लोग निर्माण या दूसरे क्षेत्रों में रोजगार को खो चुके हैं, अब अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं। ऐसे में रोजगार गारंटी उनके लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करेगा। कम्यूटरी और स्मार्ट कार्ड के इस्तेमाल के कारण यह योजना अच्छी तरह से काम कर सकी है। इस योजना के क्रियान्वयन के दौरान भ्रश्टाचार ओर कुप्रबंधन की बात भी सामने आई है, खासतौर से उन राज्यों में जहां प्रशासनिक व्यवस्था खस्ताहाल है। लेकिन उन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां कुछ हद तक साक्षरता और एक सक्रिय स्वयंसेवी संगठन काम कर रहा है, या प्रशासन प्रतिबध्द है, वहां लोग रोजगार की मांग कर रहे हैं और उन्हें रोजगार मुहैया कराया जा रहा है।

 

(3) महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण की बात उठते ही यह चिंतन आरंभ होता है कि क्या वास्तव में महिलायें कमजोर हैं या सशक्त, जो उनके सशक्तिकरण की आवश्यकता है। महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य है, सामाजिक सुविधाआंे की उपलब्धता, राजनैतिक और आर्थिक नीति निर्धारण में भागीदारी, समान कार्य के लिए समान वेतन आदि। सशक्तिकरण का अर्थ- किसी कार्य को करने या रोकने की क्षमता से है ताकि उनके लिए सामाजिक न्याय और पुरुष महिला समानता का लक्ष्य हासिल हो सके। सशक्तिकरण का अभिप्राय सत्ता प्रतिषठानों मंे स्त्रियों की साझेदारी से भी है क्योंकि निर्णय लेने की क्षमता सशक्तिकरण का एक बड़ा मानक है1

 

भारत मंे महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं हंै। कुछ महिलाये काफी सीमा तक अपने पिता, पति, भाई या बेटो पर आर्थिक दृष्टि से निर्भर है। महिला विकास के लिए समाज और पुरुषों के दृष्टिकोण के साथ साथ स्वयं महिलाओं को भी अपना दृष्टिकोण परिवर्तित करना होगा कि उनका घर परिवार से पृथक एक मनुष्य के रुप में भी अस्तित्व है और ऐसा व्यापक स्तर पर जागृति, शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण द्वारा ही संभव है2

 

राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 देश का पहला अधिनियम है जो ग्रामीण क्षेत्रों मेें निवासियों को गाॅव में ही रोजगार उपलब्ध कराता है।फरवरी 2005 मंे लागू इस अधिनियम के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार के कम से कम एक सदस्यों को वर्ष में 100 दिन का शारीरिक श्रमयुक्त रोजगार पाने का अधिकार है। 2 अक्टूबर 2009 गाॅधी जयंती के अवसर पर केन्द्र्र सरकार ने यह निर्णय लिया कि महात्मा गाॅधी के नाम से जोड़कर इस योजना को महात्मा गाॅधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के नाम से जाना गया। यह योजना महिला आर्थिक सशक्तिकरण पर बल देता है3। भारत मंे 73वाॅ संविधान अधिनियम 1992 द्वारा त्रिस्तरिय पंचायतीराज संस्थाआंे मंे महिलाआंे को अध्यक्षो और सदस्यों के रुप मंे 33ः  सीटें आरक्षित कि गई है। किन्तु यह संशोधन महिलाओं की अधिक सशक्तिकरण की कोई दिशा तय नहीं करता। इस संदर्भ में समान परिश्रमिक अधिनियम 1976 कि र्चचा की जा सकती है जो पुरुष व महिला कर्मियों को समान कार्य के लिए समान मजदूरी पर बल देता है। किन्तु इस अधिनियम में इस बात का कोई प्र्रावधान नहीं है कि कार्यो में कितनी प्रतिशत स्थान महिलाओं को दिया जाय। इस दृष्टि से (मनरेगा 2005) पहला अधिनियम है जिसमें यह स्पष्ट रुप से उल्लेखित है कि मनरेगा के किसी भी स्किम मे 33ः   रोजगार महिलाओं को मिलेगा तथा महिला-पुरुष की समान मजदुरी का प्रावधान है जो निश्चय ही महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के दिशा में एक ठोस कदम है।

 

स्ंाक्षेप मंे इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि यदि 33वाॅ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 महिलाआंे को राजनैतिक सशक्तिकरण प्रदान करती है तो मनरेगा अधिनियम 2005 महिलाओं हेतु आर्थिकसशक्तिकरणक प्रदान करती है।

 

(4) ग्रामीण विकास:

100 दिन के न्यूनतम ररोजगार की गारंटी और इसमें भ्रश्टाचार का न होना पिछली सरकार की कायमयाबी ही कही जा सकती है। सरकार की इस योजना से गांव के बेरोजगारों को सीधे फायदा पहुंचा। इस योजना की कामयाबी भी साबित हो चुकी है जिसके प्रकार ये हैः-इंडिया डेवलपमेंट फाउंडेशन की स्टडी से पता चला हे कि जिन जिलों में रोजगार गारंटी योजना लागू की गई वहां खाने के सामान की महंगाई उन जिलों के मुकाबले ज्यादा थी जहां योजना लागू नहीं की गई थी। इससे साबित होता है कि इस योजना ने ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को खर्च करने की ताकत दी है।पंजाब में दूसरे राज्यों से मजदूर अब नहीं आ रहे। यहां बिहार से पहले बड़ी संख्या में मजदूर आते थे। मजदूरों के बिहार में रहने को मनरेगा की कामयाबी माना जा रहा है।

 

(5) आर्थिक मंदी  में  योगदान:

दक्षिण एशिया में आर्थिक मंदी का बहुत खराब दौर दिखायी दे रहा है तथा आगामी कुछ वर्श और भयावह हो सकते है किन्तु भारत द्वारा सामाजिक सुरक्षा के रूप में संचालित की जा रही रोजगार गारंटी योजना मनरेगाने देश को इस संकट से बचा लिया है। दरअसल इस योजना के द्वारा देश के करोड़ो व्यक्तियों के हाथों तक विगत तीन वर्शो में एक निश्चित न्यूनतम राशि पहुंची हे जिसने इन परिवारों की क्रयशक्ति में वृध्दि की है। इसका परिणाम यह हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्त बाजार को विस्तार मिला है और इससे उत्पादन इकाइयों को व्यापक आघात नही झेलना पड़ा है। चूंकि मनरेगा के अन्तर्गत जाॅब कार्डधारकों को वर्श में न्यूनतम 100 दिन का रोजगार प्रति परिवार सुनिश्चित किया गया है अतः आजीविका की बड़ी चिन्ता से मुक्ति भी मिली है।

 

सामान्यतः आर्थिक मंदी अर्थात ’’रिसेशन’’ से तात्पर्य उस स्थिति से है जब वस्तुओं की आपूर्ति की तुलना में उनकी मांग कम हो जाती है। तथा लोगों के पास धन का अभाव भी रहता है। स्पश्ट है ऐसी मंदी के समय प्रायः सरकारी पैकेज सहायता अनुदान एवं नीतिगत प्रयासों द्वारा आर्थिक तंत्र को सहारा दिया जाता है। वर्तमान वैश्विक आर्थिक मंदी सन् 2007 की अन्तिम तिमाही में अमेरिकी वित्तीय संस्थाओं के ’’सब प्राइम’’ संकट से शुरू हुई तथा सन् 2008 में विश्व का दो-तिहाई हिस्सा इसकी चपेट में आ चुका था। ’’सब प्राइम’’ वह व्यवस्था है जिसमें बैंक किसी उपभोक्ता को पुराना ऋण चुकाने हेतु नया ऋण प्रदान कर देते हैं। इससे उपभोक्ता की वास्तविक स्थिति में सुधार नहीं आता है। लेकिन इसका प्रभाव केवल रोजगार के अवसर सृजित करने तक सीमित नहीं है। यह कार्यक्रम असल में ग्रामीण जीवन में क्रांति का अग्रदूत सिध्द हो रहा है कुछ विशेषज्ञों का मानाना है कि मनरेगा हरित क्रांति तथा बैंको के राश्ट्रीयकरण सिध्द होने जा रहा है।

 

(6) पलायन पर रोक

बेरोजगारी और गरीबी दूर करने के साथ-साथ यह गांवों में बुनियादी सोच में भी बदलाव ला रहा है। इससे ग्रामीणों में नए तरह का विश्वास व आत्मबल पैदा हो रहा है। यह बात इस तथ्य के रूप में प्रमुखता से उजागर हुई है कि जिन राज्यों में इसे कुशलता और ईमानदारी से लागू किया गया है, वहां गांवों से षहरों का पलायन की प्रवृति पर काफी हद तक रोक लग गई है ओर इससे समाज के गरीब और कमजोर वर्गो के लिए सामाजिक सुरक्षा का पुख्ता ढांचा विकसित हुआ है।गरीबों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध होने से गंाव से शहर की ओर पलायन में कमी आयी है जिससे शहरों में अनावश्यक बढती हुई आबादी से बचा जा सकता हैं।

 

(7) पर्यावरण संतुलन:

मनरेगा का प्रमुख उदेश्य ग्रामीण  इलाकों में रोजगार सुनिश्चित करना है परंतु इसके अतंर्गत स्वीकार्य परियोजनाओं के भलीभांति क्रियान्वयनल से विाकस तथा रोजगार के सृजन के साथ-साथ पर्यावरण की क्षति को भी रोका जा सकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या की प्रमुख आवश्यकता खाद्यान्न के उत्पादन औद्योगिक विकास तथा घरेलू आवश्यकता की पूर्ति हेतु जल की मांग दिनोदिन बढ़ती जा रही है। जल की आपूर्ति के बिना उत्पादन कार्य असंभव है। परंतु विकास के साथ-साथ जल के अधिक मात्रा में प्रयोग से पेयजल की भीषण समस्या पैदा हो गई है।

 

मनरेगा के अंतर्गत जल संरक्षण के साथ-साथ परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्नवीकरण हेतु जलाशयों से गाद की निकासी पर भी जोर दिया गया है। इस कार्य से न केवल ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिल रहा है बल्कि जल सरंक्षण के द्वारा ग्रामीण लोगों को साफ तथा स्वच्छ पेयजल भी उपलब्ध हो रहा है। मनरेगा के अंतर्गत बाढ़ नियंत्रण तथा जलभराव से ग्रस्त इलाकों से पानी निकासी की व्यवस्था पर भी जोर दिया गया है। मनरेगा के अंतर्गत होगी सिंचाई परियोजनाओं पर जोर दिया गया है तथा गांवों में भी सड़कों के किनारे-किनारें नाली निर्माण का प्रावधान है। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के विकास तथा संचालन के लिए वनों की कटाई की जाती है जिससे पर्यावरण असंतुलन पैदा हो जाता है। मनरेगा में स्वीकार्य सूक्ष्म तथा लघु सिंचाई परियोजनाएं पर्यावारण को क्षति पहंुचाए बिना सिंचाई कार्य में सहयोग दे कृषि उत्पादन में वृध्दि संभव करेंगी।मनरेगा के अंतर्गत भूमि विकास पर जोर दिया गया है। इसके अंतग्रत भूमि की उर्वरता को बनाए रखते हुए कृषि कार्य करना है। भूमि की उर्वरता इसमें उपस्थित पोषक तत्वों से होती है। इसकी मौलिक संरचना भी समान रूप् से महत्वपूर्ण है। अनुपयुक्त कृषि पध्दति से खेती करने में भूमि की उर्वरता इकम होने लगती है।

 

अतः भूमि विकास के लिए मनरेगा के अंतर्गत उपयुक्त कृषि प्रणाली पर जोर दिया जा रहा है। रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव-उर्वरकों के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है जिससे भूमि की उर्वरता को अक्षत बनाए रखने के साथ-साथ भूमि के भौतिक गुणों में भी सुधार किया जा सकेगा एवं पर्यावरण में आए असंतुलन तथा प्रदूषण को दूर कर स्वस्थ पर्यावरण प्राप्त किया जा सकेगा।सूखे से बचाव के लिए मनरेगा के अंतर्गत वृक्षारोपण तथा वन संरक्षण परियोजना को शामिल किया गया है। वृक्षों का वर्षा से सीधा संबंध है। अगर वृक्ष नही ंतो सूखा अवश्यंभावी है। लगातार सूखा मरू स्थलीकरण की पूर्व चेतावनी है। अतः वनों के संरक्षण द्वारा सूखा तथा बाढ़ की परेशानियों को कम किया जा सकता है। वन पर्यावरणीय पूर्ति हेतु तथा विकास के नाम पर लगातार वनों का कटाव जारी है। वनों के विनाश से परिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हों जाता है। इसलिए वनों का हृास भयानक पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देता है।वनों वर्षो एवं भूमिगत जलस्तर के लिए उत्तरदायी होते हैं। वनों के कारण आद्रता रहती है, तापमान कम रहता है तथा बादलों को संघनन होकर बरसने में मदद करती है। वृक्षों की जडे़ भूमि की ऊपरी परत को पकडे रहती हैं जो भूमि कटाव तथा भूक्षरण को रोकती है। वृक्षा के पत्ते सड़-गल कर मिट्टी में जीवांश तथा नमी प्रदान करते हैं जिससे भूमि की उर्वरता बढ़ती हैं।मनरेगा के वृक्षारोपण तथा वनसंरक्षण से जुडे होने के कारण पर्यावरण क्षय को कम करके पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।

 

निष्कर्ष रू

मनरेगा रोजगार अधिकार को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस कानून के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में आर्थिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचा विकसित किया गया है जिससे लोगों को रोजगार के नियमित अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। साथ ही इसके अंतर्गत मुख्य रूप से रोजगार महिला आर्थिक सशक्तिकरण,वनों के विनाश भूमि कटाव पर्यावरण संतुलन पलायन जैसी उन समस्याओं को भी संबंधित किया गया है जिसके कारण बडे़ पैमाने पर गरीबी फैल रही है। इस कानून के उचित क्रियान्वयन से रोजगार द्वारा गरीबी के भौगोलिक नक्शे को बदला जा सकता है।आवश्यकता इस बात की है कि भ्रष्टाचार को रोका जाय योजना में पारदशर््िाता हो तथा जनता  भी जागरुक हो तभी योजना का लाभ निचले स्तर के लोगों को मिल सकता है।

 

सदंर्भ ग्रंथ

1      राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी (2012),स्मारिका,सहशोध संक्षेपिका, ’’महात्मागांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का कियान्वयन’’ नेताजी सुभाषचंद बोस शास कन्या महा, सिवनी, म.प्र. 30-31 जनवरी 2012

2      कौशिक, जगबीर (2009),मनरेगा, गरीबों का सुरक्षा कवच, कुरूक्षेत्र दिसम्बर 2009, प्रकाशन विभाग , पूर्वीखण्ड 3-4, लेवल-7, रामकृष्ण पुरम नई दिल्ली।

3      तिवारी,अतुल (2009) ’’मनरेगा’’ ग्रामीण भारत में बदलाव लाने का अभियान ,कुरूक्षेत्र पूर्ववत

4      कटारिया,सुरेन्द्र (2009) ’’आर्थिक मंदी से जूसने में मनरेगा का योगदान ’’ कुरूक्षेत्र पूर्ववत

5      सेतिया,सुभाष, (2009) ’’मनरेगा ने खोली गांवों में रोजगार के नए द्वार ’’ कुरूक्षेत्र,पुर्ववत द्ध

6      खेरा, रितिका (2006)- श् त्नतंस म्उचसवलमउमदज ळनंतंदजमम ंदक उपहतंजपवदश् जीम ीपदकन 17 रनदम

7      नारायण, सुधा (2007)- श्त्नतंस म्उचसवलमउमदज ंदक ूवउमदे ूवता बीपसक बंतमए मबवदवउपब ंदक चवसपजपबंस ूममासलश्ए उंतबी । 43 (9)ण्                                                                  

8      सुदर्शन, रत्ना (2006)- श्त्नतंस ॅवउमद - छत्म्ळ।श् प्ण्स्ण्व्ण् च्तवरमबज तमचवतजण्

9      खेरा, रीतिका (2009)- श्ॅवउमद ॅवतामते - च्तमेमदजंजपवद व िजीम छंजपवदंस त्नतंस म्उचसवलमउमदज ळनंतंदजमम ।बजण्श्

10   सिंहए प्रदीप कुमार- संगठित महिलाएॅ सशक्त समाजकुरूक्षेत्रए 2010ए जूनए पृ.क्र 3-7.

11   ग्रेवाल, आर.एस. इम्पेक्ट आफ रूरल डेवलप्मंेट प्रोग्राम आॅन रूरल वूमेन इन भिबानी डिस्ट्रिक्ट आॅफ हरियाणा ;1985) इण्डियन जनरल औफ एग्रीकल्चर इकानामिक्स, वाल्यूम जुलाई-सितमबर पृ. क्रं. 115-120.

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13      Harinarayan, Rao- Promotion of women enterprenership- brief comment small enterprise development management and extersion Journal, SDEME , Vol- XVIII, No. 2, june.

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Received on 12.05.2014       Modified on 25.05.2014

Accepted on 10.06.2014      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences 2(2): April-June, 2014; Page 122-127