हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियां एवं भारत-जापान
रणनीतियों का एक अध्ययन
Ambeshvari Kumar Pandey1, Pankaj Kumar2
1Assistant Professor Department of Political Science, Government Degree College Bahua Dehat, Fatehpur (U.P.) (Enrolled as Research Scholar in Department of Political Science, University of Allahabad, Prayagraj UP.
2Professor, Department of Political Science, University of Allahabad, Prayagraj, UP.
*Corresponding Author E-mail: ambeshvarip@gmail.com
ABSTRACT:
हिंद-प्रशान्त क्षेत्र अंतराष्ट्रीय राजनीति में उभरता हुआ भू-सामारिक एवं भू-राजनीतिक संकल्पना है इसके अंतर्गत पूर्वी अफ्रीका एवं पश्चिमी एशिया के तटीय क्षेत्र से लेकर पूर्वी एशिया तक का तटीय क्षेत्र आता है हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र हाल ही में भू-सामारिक चर्चा में सुस्थापित शब्द ;जमतउद्ध एशिया प्रशान्त के स्थानापन्न के रूप में प्रवेश किया है हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत है वर्तमान समय में हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र सामरिक एवं आर्थिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है वैश्विक आर्थिक शक्ति का स्थानांतरण पश्चिम से पूर्व अर्थात एशिया की ओर हो गया है जिसके परिणाम स्वरूप इस क्षेत्र में स्थापित एवं उभरती शक्तियों के मध्य सहयोग एवं संघर्ष बढ़ रहा है हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्ग है चीन वर्तमान समय में मलक्का दुविधा के कारण समुद्री संचरण मार्ग पर प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रहा है साथ ही स्ट्रिंग आफ पल्र्स की नीति के माध्यम से भारत को घेर रहा है चीन मेरीटाइम सिल्क रूट के माध्यम से हिंद महासागरीय क्षेत्र से लेकर, मध्य पूर्व अफ्रीका, यूरोप तक अपनी शक्ति बढ़ा रहा है जिससे भारत एवं जापान दोनों के समाज सुरक्षा चिंताएं प्रस्तुत करता है जिससे भारत एवं जापान दोनों के समक्ष सुरक्षा चिन्तायें प्रस्तुत करता है जिससे भारत-जापान, हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने के लिए आपस में सहयोग बढ़ा रहे हैं भारत एवं जापान के मध्य 2014 में विशेष सामरिक एवं वैश्विक साझेदारी समझौता हुआ है।
KEYWORDS: भू-सामरिक, समुद्री संचरण मार्ग (SLOC)] प्रतिसंतुलन, नागरिक परमाणु समझौता, सुरक्षा संवाद, भारत, जापान।
प्रस्तावना -
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक उभरता हुआ भू सामरिक एवं भू-आर्थिक एवं भू-राजनीतिक संकल्पना है यह हिंद महासागर एवं पश्चिमी प्रशांत महासागर के संगम के फल स्वरुप निर्मित हुआ है इसके अंतर्गत पूर्वी अफ्रीका एवं पश्चिम एशिया के तटीय क्षेत्र से लेकर पूर्वी एशिया का तटीय क्षेत्र आता है इसके प्रमुख संघटक क्षेत्र अरब सागर, लाल सागर, फारस की खाड़ी, अदन की खाड़ी, बंगाल की खाड़ी, दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर, गुआम द्वीप, मार्शल द्वीप समूह है हिन्द-प्रशांत क्षेत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सामरिक विशेषज्ञ गुरप्रीत खुराना ने सन 2007 में अपने एक लेख ‘‘सेक्यूरिटी ऑफ सी लाईन्सः प्रॉस्पेक्ट फॉर इंडिया-जापान कापरेशन‘‘ में किया था।1 इसके पश्चात जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में ही भारतीय संसद में अपने भाषण के दौरान हिंद-प्रशान्त क्षेत्र शब्द का प्रयोग किया था उन्होंने इस संदर्भ में यह कहा कि-‘‘हिंद महासागर एवं प्रशान्त महासागर के संगम का समय है, विस्तृत एशिया में स्वतंत्रता एवं समृध्दी के लिए समुद्रों का व्यापक जुड़ाव‘‘2 हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र हाल ही में भू-सामरिक चर्चा में सुस्थापित शब्द एशिया-प्रशांत एशिया पैसिफिक के स्थानापन्न के रूप में प्रवेश किया है फिर भी दोनों संकल्पनाओं में मूल रूप से भिन्नता है एशिया प्रशान्त दुनिया का वह हिस्सा है जो पश्चिमी प्रशांत महासागर के पास या निकट है इसका आकार संदर्भ के अनुसार बदलता रहता है लेकिन आमतौर पर इसमें पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और ओशिनिया के कई क्षेत्र शामिल होते हैं इस शब्द में रूस उत्तरी प्रशांत और पूर्वी प्रशांत महासागर के तट पर स्थित महा अमेरिका के कई देश भी शामिल हो सकते हैं उदाहरण के लिए एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कोपरेशन (एपेक) में कनाडा, चिली, रूस, मैक्सिको, पेरू और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल है ऐसा प्रतीत होता है कि ‘‘एशिया प्रशान्त‘‘ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और इसमें क्षेत्रों का शामिल होना, ना होना संदर्भ पर आधारित है इसका नामकरण होने के बावजूद भारत इस क्षेत्र का हिस्सा नहीं था एशिया-प्रशान्त सुरक्षा संकल्पना की तुलना में आर्थिक संकल्पना अधिक है 1980 के दशक के अंत से यह उभरते बाजार के रूप में लोकप्रिय हुआ जो तेज गति की आर्थिक वृद्धि की ओर अग्रसर था केवल एक बहुपक्षीय संस्था है जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र का प्रभावी रूप से प्रतिनिधित्व करती है जो एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कापरेशन एपेक है, जिसका भारत सदस्य नहीं है।3
दूसरी ओर हिंद-प्रशान्त क्षेत्र, हिंद महासागर पश्चिमी प्रशांत महासागर और उसके किनारों के विशाल जनसमूह के एकत्रित परिदृश्य को प्रस्तुत करता है यद्यपि यह अवधारणा लगातार विकसित हो रही है, ज्यादातर विशेषज्ञ इसको पश्चिम से पूर्व की ओर शक्ति एवं प्रभाव के स्थानांतरण के रूप में देख रहे हैं इसका भौगोलिक विस्तार पूर्वी अफ्रीका से लेकर हिंद महासागर को पार करते हुए पश्चिमी प्रशान्त महासागर तक है हिंद प्रशांत क्षेत्र सामरिक क्षेत्र के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र है सन 2010 से हिंद प्रशांत क्षेत्र शब्द ने भारत सरकार के अंतर्गत ख्याति अर्जित की और तब से इसका उपयोग अक्सर भारत के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व द्वारा किया जाता है लगभग 2011 से इस शब्द का उपयोग रणनीतिक विश्लेषकों और ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका में उच्च स्तरीय सरकार द्वारा अक्सर किया गया है हालांकि वर्ष 2013 में ऑस्ट्रेलिया के रक्षक श्वेत पत्र में पहली बार किस शब्द का औपचारिक आधिकारिक रूप में प्रयोग किया गया था वर्ष 2013 में अमेरिकी अधिकारियों ने इंडो एशिया पेसिफिक शब्द का उपयोग शुरू कर दिया है इसने अमेरिका को इन्डो पैसिफिक के नये संयोग में अपनी भौगोलिक समावेशिता बनाए रखने में सक्षम बनाया है जून 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के जारी किए गए संयुक्त वक्तव्य मे हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र शब्द संकल्पना के प्रयोग से इसका महत्व बढ़ा हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र के जिम्मेदार प्रतिनिधि के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और अमेरिका के बीच गहरी साझेदारी पर सहमत हुए जिससे इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बढ़े इन सभी उद्देश्यों में आतंकवादी खतरों का मुकाबला करना, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देना मुक्त और निष्पक्ष व्यापार बढ़ाना और ऊर्जा संपर्क को बढ़ावा देना है।4
हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा के साथ 21 वीं सदी में उदित हुआ इसका प्रारम्भ 1990 के दशक में भारत की प्रभावशाली आर्थिक विकास और उसके पश्चात् परमाणु शस्त्रीकरण के साथ हुआ. वैश्विक आर्थिक शक्ति का स्थानांतरण शिफ्ट पश्चिम से पूर्व अर्थात एशिया की ओर हो गया है और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र का भू-सामरिक महत्व बढ़ा है, जिससे स्थापित एवं उभरती शक्तियों के मध्य सहयोग एवं प्रतिद्वंदिता बढ़ रही है। हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से अग्रणी क्षेत्र है विशेषकर हाइड्रोकार्बंन्स जो वैश्विक उद्योगों को गति प्रदान करते हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं और इन्हीं संसाधनों को लेकर विश्व की स्थापित एवं उभरती शक्तियों के मध्य प्रतिष्पस्पद्ध्र्रा है वर्तमान समय में वैश्विक आर्थिक शक्ति के स्थानांतरण के साथ यह अंतराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के केंद्र के रूप में तेजी से उभरा है बड़े बाजार को साकार रूप देता है जो विश्व की लगभग आधी जनसंख्या को सम्मिलित करता है क्षेत्रीय राजनीति में आर्थिक मुद्दे वर्त्तमान समय में हावी हो रहे है। इस परिप्रेक्ष्य में क्षेत्रीय शान्ति एवं स्थिरता, नौपरिवहन की स्वतंत्रता और समुद्री सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है जबकि अन्तराष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत समुद्री मार्ग से होता है इस सन्दर्भ में समुद्री संचरण मार्ग (ेसवबद्ध में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष आवागमन बहुत महत्वपूर्ण है यह क्षेत्र विश्व के महत्वपूर्ण चोक प्वाइंट को सम्मिलित करता है जो वैश्विक व्यापार-वाणिज्य के लिये महत्वपूर्ण है.जिनमें मलक्का जलसन्धि जो विश्व की आर्थिक उन्नति के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है, साथ ही बन्दरगाहों के निर्माण की बूम हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र के सामरिक महत्त्व को बढ़ाती है,जो सामरिक प्रतिष्पर्धा एवं वाणिज्यिक परिवहन को बढ़ावा देता है बीते समय इस क्षेत्र में कच्चे पदार्थों तेल और गैसों का प्रवाह बढ़ा है जो उभरते एशिया के लिये महत्वपूर्ण है।
इसकी भू-सामरिक महत्त्व के कारण ही विश्व की महत्वपूर्ण शक्तियां इसकी ओर आकर्षित हो रही है और इसके चोक पॉइंट और वस्तुओं के आवागमन मार्ग को अपने नियंत्रण में लेना चाहती है। इस क्षेत्र में चीन अपने वन बेल्ट वन रोड वइवत नीति, स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स मोतियों की माला की नीति, चीन-पाक आर्थिक कॉरिडोर (बचमबद्ध दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर में अपना प्रभाव बढ़ाना, के माध्यम से पूरे हिन्द- प्रशान्त क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।5 अमेरिका की एशिया पिवोट की नीति, जिसके अंतर्गत एशिया के पुर्नसंतुलन की नीति, इस दिशा में अमेरिका की सक्रियता को दर्शा रही है भारत एवं जापान मिलकर इस हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्वतंत्र एवं मुक्त आवागमन, नियम आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये कई सामरिक समझौता कर चुके है।भारत एक्ट ईस्ट पालिसी के माध्यम से इस क्षेत्र में सक्रियता दिखा रहा है। भारत और जापान मिलकर एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर की नीति का निर्माण किए हैं, तथा चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत जापान, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया मिलकर चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (फन्।क्द्ध का निर्माण किए हैं।
चीन हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को न्यू सिल्क रूट भी कहा जा रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को न्यू शुल्क न्यू सिल्क रूट भी कहा जा रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट को एशिया अफ्रीका को जोड़ने वाली प्राचीन सिल्क रोड के तर्ज पर ही बनाए जाने की बात कही जा रही है इस प्रोजेक्ट का मकसद यूरोप, अफ्रीका, और एशिया के कई देशों को सड़क और समुद्र के माध्यम से जोड़ना है। चीन के अनुसार सड़क रास्तों से दुनिया के कई देशों को एक साथ जोड़ने से इन देशों के बीच कारोबार को बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में मदद मिलेगी। इसमें दुनिया के 65 देशों को जोड़ने की योजना है, प्रोजेक्ट पूरा होने में करीब 30 से 40 साल लग सकता है वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट चीन के प्रसिद्ध सिल्क रोड इकोनामिक बेल्ट एससीआरबी और 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड का एकीकृत स्वरूप है वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत छह आर्थिक गलियारे बन रहे हैं। चीन इन आर्थिक गलियारों के जरिए जमीनी और समुद्री परिवहन का जाल बिछा रहा हैं। पहला- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, दूसरा-न्यू यूरेशियन लैंड ब्रिज, तीसरा-चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा, चैथा-चीन,मंगोलिया, रूस आर्थिक गलियारा, पांचवा-बांग्लादेश, चीन, भारत, म्यांमार आर्थिक गलियारा, छठा-चीन इंडो-चाइना प्रायद्वीप गलियारा, दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, तथा पाकिस्तान इस प्रोजेक्ट से जुड़ रहे हैं इससे भारत के पड़ोसी देशों में चीन की पकड़ और मजबूत होगी तथा कारिडोर के इलाके में चीनी सैनिकों की मौजूदगी भी भारत की सुरक्षा चुनौतियां बढ़ाती है, भारत वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट के एक हिस्से चीन पाक आर्थिक कारिडोर सीपीईसी का विरोध किया है जो पाक अधिकृत कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया ळें भारत ने चीन में होने वाले वन बेल्ट वन रोड शिखर सम्मेलन में प्रतिनिधि भेजने से इनकार कर दिया है चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के ग्वादर से लेकर चीन के शिनजियांग प्रांत के काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबी परियोजना है। इस परियोजना को पूर्ण होने में काफी समय लगेगा इस परियोजना पर 46 बिलियन डालर लागत का अनुमान है। इस परियोजना का उद्देश्य रेलवे एवं हाईवेज के माध्यम से तेल और गैस का कम समय में वितरण करना है इस परियोजना में सड़कों, रेलवे, पाइप लाइनों, जल विद्युत संयंत्रों, ग्वादर बंदरगाह का विकास और अन्य परियोजनाओं का विकास किया जाएगा। सूचनाओं के अनुसार ग्वादर बंदरगाह को इस तरह से विकसित किया जा रहा है, ताकि पाकिस्तान 19 मिलियन टन कच्चे तेल को चीन तक सीधे भेजने में सक्षम होगा इसके माध्यम से चीन की हिंद महासागर तक पहुंच और मजबूत होगी. वर्तमान समय तक मध्य-पूर्व, अफ्रीका तथा यूरोप तक पहुंचने के लिए चीन के पास एकमात्र व्यवसायिक रास्ता मलक्का जलडमरूमध्य है. यह मार्ग लम्बा होने के साथ-साथ युद्ध के समय बंद भी हो सकता है, इसी को मलक्का द्विविधा कहा जाता है।6 हिंद-प्रशान्त क्षेत्र सामरिक एवं आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। यह प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से अग्रणी क्षेत्र है विशेषकर हाइड्रोकार्बन जो वैश्विक उद्योगों को गति प्रदान करते हैं यह एक बड़ा बाजार है अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 90 प्रतिशत समुद्री मार्ग से होता है इस संदर्भ में समुद्री संचरण मार्ग में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष आवागमन बहुत महत्वपूर्ण है यह क्षेत्र विश्व के महत्वपूर्ण चोक पॉइंट को सम्मिलित करता है जो वैश्विक व्यापार वाणिज्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसके भू-सामरिक महत्व के कारण ही विश्व की महत्वपूर्ण शक्तियां इसकी ओर आकर्षित हो रही हैं और इसके चोक पॉइंट और आवागमन मार्ग को अपने नियंत्रण में लेना चाहती हैं।
भारत और जापान हिंद-प्रशान्त क्षेत्र में स्वतंत्र एवं मुक्त आवागमन, नियम आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई सामरिक समझौता कर चुके हैं भारत एक्ट ईस्ट पालिसी के माध्यम से इस क्षेत्र में सक्रियता दर्शा रहा है भारत-जापान एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट पर मिलकर कार्य कर रहे हैं इसके माध्यम से भारत एवं जापान मिलकर चीन के वन बेल्ट वन रोड को प्रतिसंतुलित कर रहे हैं. एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का मुख्य लक्ष्य प्राचीन समुद्री मार्गों को खोजते हुए भारत एवं दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों को अफ्रीकी महाद्वीप को जोड़ने वाले नए समुद्री गलियारे को बनाना, हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को प्रति संतुलन के लिए भारत और अमेरिका के मध्य मालाबार नौसैन्य अभ्यास प्रति वर्ष होता है 2015 से जापान भी इसमें स्थाई सदस्य के रूप में शामिल हो गया है। हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व को संतुलित करने के लिए भारत, जापान अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया मिलकर चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (फन्।क्) का निर्माण किए हैं। यह ‘मुक्त खुले और समृद्ध’ हिन्द-प्रषान्त क्षेत्र सुनिष्चित करने और उसके समर्थन के लिए इन देषों को एक साथ लाता है।7 भारत-जापान के मध्य 11 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्रा के दौरान टोक्यो में नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। यह समझौता भारत और जापान के बीच रणनीतिक साझेदारी का प्रतिबिम्ब है और ऊर्जा सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा में सहयोग बढ़ाने का मार्ग प्रषस्त करेगा। यह दोनों देषों के बीच स्थिर, विष्वसनीय और शांतिपूर्ण उद्देष्यों के लिए ऊर्जा के विकास को बढ़ावा देगा। भारत एवं जापान के मध्य परमाणु समझौते से भारत की विषाल ऊर्जा संसाधनों तक पहुंच हो जाएगी इससे भारत अपने त्वरित विकास को कायम रख सकेगा।8
भारत एवं जापान के मध्य 2014 में भारत-जापान विषेष सामरिक एवं वैष्विक साझेदारी पर हस्ताक्षर हुआ। इसका उद्देष्य हिन्द-प्रषान्त क्षेत्र में स्वतंत्र मुक्त एवं कानून आधारित व्यवस्था का निर्माण करना है। भारत एवं जापान के बीच 2018 के षिखर सम्मेलन में टू प्लस टू मंत्रिस्तरीय वार्ता पर सहमति बनी थी। इसका उद्देष्य द्विपक्षीय सुरक्षा एवं रक्षा सहयोग को मजबूती देना तथा विषेष सामरिक एवं वैष्विक भागेदारी में मजबूती लाना है। यह टू प्लस टू सचिव स्तरीय वार्ता का अपग्रेड रूप है। टू प्लस टू मंत्रिस्तरीय वार्ता में दोनों देषों के रक्षा एवं विदेष मंत्री भागेदारी करते हैं। प्रथम टू प्लस टू मंत्रिस्तरीय वार्ता 2019 में नई दिल्ली में आयोजित की गयी इस दौरान भारत की एक्ट ईस्ट पाॅलिसी तथा जापान की फ्री एण्ड ओपेन इण्डो पैसिफिक विजन के तहत अपने-अपने प्रयासों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। भारत एवं जापान के मध्य 2015 में भारत-जापान विजन 2025 विषेष सामरिक एवं वैष्विक साझेदारी विष्व एवं हिन्द-प्रषान्त क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए सहयोग पर संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ जिसमें दोनों देषों ने भारत-जापान विषेष रणनीतिक और वैष्विक साझेदारी को एक गहरी व्यापक आधारित और एक्षन उन्मुख साझेदारी में बदलने का संकल्प लिया, जो उनके दीर्घकालिक राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों के व्यापक अभिसरण को दर्षाता है। प्रस्तुत शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के बढ़ते सामरिक वर्चस्व का मूल्यांकन करना तथा भारत एवं जापान के द्वारा किए गये प्रति संतुलन के प्रयासों का विश्लेषण करना है।
निष्कर्ष-
वर्तमान 21वीं सदी में विश्व की सामरिक एवं आर्थिक शक्तियों का केन्द्रण हिंद प्रशान्त क्षेत्र की ओर हुआ है और इस क्षेत्र के बढ़ते महत्व के कारण इसमें महा शक्तियों के बीच आपस में प्रतिष्पर्धा बढ़ गयी है वर्तमान समय में इस क्षेत्र में चीन का आर्थिक उभार और उसके परिणामस्वरुप उसका सैन्य आधुनिकीकरण ने इस क्षेत्र की सुरक्षा संरचना को परिवर्तित किया है चीन सम्पूर्ण हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र पर अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास कर रहा है इसके लिए चीन वन बेल्ट वन रोड की नीति तथा स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स के माध्यम से पूरे समुद्री संचरण मार्ग पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाह रहा है तथा पूरे दक्षिण चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर सागर पर वर्चस्व बढ़ा रहा है जिससे भारत एवं जापान दोनों के समक्ष समान रूप से सुरक्षा चिंताएं पैदा हुई है। भारत एवं जापान दोनों लोकतांत्रिक देश हैं दोनों देश हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में स्वतंत्र एवं मुक्त आवागमन तथा नियम आधारित व्यवस्था के समर्थक हैं भारत एवं जापान मिलकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास कर रहे हैं इस दिशा में भारत जापान मिलकर कई सामरिक समझौते किये है। भारत और जापान के मध्य विशेष सामरिक एवं वैश्विक साझेदारी नामक समझौता हो चुका है भारत एवं जापान मिलकर एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं यह चीन के ओ0बी0ओ0आर0 नीति का प्रति संतुलन है भारत एवं अमेरिका के मध्य होने वाले वार्षिक नौसैन्य अभ्यास मालाबार अभ्यास का जापान स्थायी भागीदार बन गया है मालाबार नौसैन्य अभ्यास सामरिक चुनौतियों के साथ गैर परंपरागत सुरक्षा चुनौतियों प्राकृतिक आपदा, समुद्री डकैती, आतंकवाद से निपटने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत, जापान, अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया मिलकर चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (फन्।क्द्ध का निर्माण किया है यह चारों लोकतांत्रिक शक्तियां हैं। यह एक अनौपचारिक सामरिक संवाद का मंच है इसका लक्ष्य स्वतंत्र एवं खुला हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देना है। भारत और जापान के मध्य असैन्य परमाणु समझौता हो चुका है जो दर्शाता है कि भारत एवं जापान के मध्य संबंध प्रगाढ़ता की नई ऊंचाइयां छू रहे हैं भारत अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से हिन्द- प्रशान्त क्षेत्र में अपनी सक्रियता को बढ़ाया है अमेरिका की इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका है यह अपनी एशिया पिवोट की नीति के माध्यम से अपने पुराने सहयोगियों तथा अन्य लोकतांत्रिक ताकतों से संबंध बढ़ाकर संतुलन स्थापित करने का प्रयास कर रहा है प्रस्तुत शोध पत्र में यह बताने का प्रयास किया गया है कि चीन की आक्रामकता को प्रति संतुलित करने के तथा हिंद प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र एवं मुक्त आवागमन तथा नियम आधारित व्यवस्था बनाये रखने के लिए भारत जापान मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं तथा भविष्य में इन चुनौतियों से निपटने में भारत और जापान की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण कर्ता की भूमिका अदा करेंगे।
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Received on 13.12.2022 Modified on 31.12.2022 Accepted on 06.01.2023 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(4):169-174.
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